Varanasi

Baba Kinaram Varanasi-बाबा कीनाराम एक महान संत और अघोडी की दिव्य कहानी

Baba Kinaram Varanasi:-अघोराचार्य बाबा कीनाराम वाराणसी के महान संत और अघोरी थे जिनके नाम पे एक स्थल भी बनाया गया है वाराणसी के रविन्द्रपुरी इलाके में जिससे बाबा कीनाराम के नाम से जाना जाता है.इस आर्टिकल में आप जानेंगे बाबा कीनाराम के बारे में.

Baba Kinaram का बचपन

वाराणसी के पास रामनगर जो की अब चन्दौली के नाम से जाना जाता है वहाँ सन 1601 में पैदा हुए थे बाबा कीनाराम 170 साल तक जीवित रहे जो अपने आप में एक चमत्कार था.बाबा कीनाराम बचपन से ही अध्यात्म से जुड़ गए थे वो कभी भी विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन परिवार ने उनकी शादी उनकी इच्छा न होते हुए भी करा दी थी.लेकिन विवाह के करीब 2 साल बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया था.ठीक एक दिन पहले बाबा कीनाराम ने अपनी माँ से जिद्द करके दूध भात खाया था.सनातन धर्म में किसी के मृत्यु के पश्चात दूध-भात खाने का नियम है.

ज़मींदार से छुड़ाकर बनाया शिष्य

एक बार Baba Kinaram ग़ाज़ीपुर एक छोटे से गाँव में थे उन्होंने देखा एक वृद्ध औरत रो रही है उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा तो उस वृद्ध औरत ने बताया कि उसके लड़के ने जमींदार से पैसे उधार लिए थे जब वो पैसा लौटा नहीं पाया तो ज़मींदार ने औरत के लड़के को बंधक बना लिया था जब कीनाराम बाबा ने बोला मै चल के देखता हूँ तो उन्होंने जमींदार से बात की और बोले जहाँ लड़का बैठा वहां थोड़ा सा ज़मीन खोद लो पैसा मिल जायेगा.

जब ज़मींदार ने खुदवाया तो पैसा निकल गया ज़मींदार ने बाबा के पैर पकड़ लिया और माफ़ी मांगी उसके बाद उस लड़के की वृद्ध माँ ने अपना लड़का बाबा कीनाराम को सौंप दिया फिर बाद में बाबा के शरीर त्याग करने के बाद वो लड़का जिसका नाम बीजाराम था बनारस में उनके मठ की गद्दी पे विराजमान हुए.

Baba Kinaram की गिरनार पर्वत की यात्रा

Baba Kinaram की गिरनार पर्वत की यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है और बोला जाता है आज भी वहां पे अघोड़ियों के दर्शन होते है.बाबा कीनाराम और उनके शिष्य बीजाराम जूनागढ़ पहुँचे जहाँ बीजाराम भिक्षा माँग रहे थे तभी वहां के नवाब के आदमियों ने उनको जेल में डाल दिया.अगले दिन जब बाबा कीनाराम को पता चला तो वो भी भिक्षा मांगने लगे और उनको भी जेल में डाल दिया गया. फिर बाबा ने देखा वहां पे 981 चक्कियाँ थी जिन्हे केवल साधू संत चला रहे थे बाबा ने तुरन्त अपनी सिद्धियों से 981 चक्कियाँ अपने आप चला दी जब ये बात वहां के नवाब को पता चली तो उसने बाबा से बहुत माफ़ी मांगी और कभी किसी साधू संत को परेशान न करने का वचन दिया.

Baba Kinaram जब वाराणसी पहुंचे

Baba Kinaram उत्तराखंड के पहाड़ों में कठोर तपस्या करने के बाद बाबा कीनाराम हरिश्चंद्र घाट पे बाबा कालूराम के पास पहुंचे.वहाँ पे बाबा कालूराम शवों के खोपडियों को बहुत प्यार से अपने पास बुला के चने खिलाया करते थे जब बाबा कीनाराम ने ये सब देखा तो उन्होंने इसको व्यर्थ का कहा और अपने शक्तियों से खोपड़ियों का चलना बंद कर दिया. कालूराम बाबा समझ गए ये केवल कीनाराम बाबा ही कर सकते है.

उसके बाद बाबा कालूराम ने बाबा कीनाराम से कहा भूख लगी है मछली खिलाओ बाबा ने गंगा मैया से कहा एक मछली दे तो मछली खुद अपने आप पानी से बाहर आ गयी.उसके बाद बाबा कालूराम ने एक मुर्दा जो गंगा में बहता हुआ जा रहा था उसको बाबा कीनाराम को दिखाया.बाबा कीनाराम ने उसको आवाज़ दिया वो मुर्दा उठ खड़ा हुआ और अपने घर चला गया बाद में उसकी माँ ने उस लड़के को बाबा कीनाराम को सौंप दिया था.

उसके बाद बाबा कालूराम ने उनको बनारस स्थित भदैनी में ही रहने को कहा और बोला वाराणसी में ही सारे तीर्थ मिल जायेंगे कही और जाने से मना कर दिया इसके बाबा कीनाराम वाराणसी में रह गए उसके बाद बाबा कीनाराम स्थल की स्थापना हुई.

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