अयोध्या में राम मंदिर का उद्धघाटन हुआ और PranPratistha की विधि की गयी.आपको पता है प्राणप्रतिष्ठा होता क्या है. हिन्दू देवी देवताओं का जब मंदिर बनता है और उसमें जब उनकी प्रतिमा रखी जाती है तो वो हमारे लिए एक पत्थर की मूर्ति नहीं होती हम उसको एक जीवंत आत्मा मानते है.इसलिए हम उनसे प्राथना करते है.और उसी प्रक्रिया का नाम होता है PranPratistha.इस आर्टिकल में डिटेल में आपको बताएंगे PranPratistha क्या होता है.
PranPratistha की विधि पंचतन्त्र आगम शास्त्रों में पूरे डिटेल में दी गयी है.ये जितनी भी प्रक्रिया होती है वो मूर्ति के शुद्धिकरण के लिए होती है मतलब की मंदिर जाने से पहले वो मूर्ति पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाये.आइये जानते है इसकी विधि.
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1:-KarmaKutir(पहली विधि PranPratistha में)
सबसे पहले विधि होती है कर्मकुटीर ,जब भी मूर्ति का निर्माण होता है और जिस भी शिल्पीकार के यहाँ मूर्ति रखी जाती है वहाँ पे वो दरबा घास जो की हिन्दू में बहुत पवित्र मानी जाती है उससे पूरी मूर्ति को शुद्ध करता है और साफ़ करता है. उसके बाद घी और शहद का लेप लगाया जाता है मूर्ति के आँखों में, उसके बाद मूर्ति की आँखें बंद कर दी जाती है.उसके बाद एक यज्ञ होता है जहाँ पे अग्निदेव का हम उच्चारण करते है.और अंत में मूर्ति के दाहिने कलाई में नाड़ा छड़ी करके एक कलश बांध दिया जाता है.
2.Jaladhivas
दूसरी प्रक्रिया जो होती है वो है जलाधिवास.इसमें मूर्ति को पानी में डाला जाता है और ये इसलिए किया जाता है की मूर्ति कहीं से खडित तो नहीं है.उसके बाद उसी पानी में थोड़ा पंचामृत डालते है और उससे कपडे से ढक देते है.फिर से यज्ञ होता है और हम अग्नि देव का आहवाहन करते है.उसके बाद मूर्ति के ऊपर से कपड़ा हटाया जाता है और मूर्ति को घंटियों से जगाया जाता है और पानी से बाहर निकालते है.
3.Dhanyadhivas
धन्याधिवास तीसरी प्रक्रिया है,धन्य यानी की अनाज तो इसमें मूर्ति को चावल या गेहूं के ऊपर लेटाया जाता है,और उसके बाद ऊपर से भी चावल या गेहूं से मूर्ति को ढक दिया जाता है इसका उद्देश्य है मूर्ति का और भी शुद्धिकरण करना.
4.Ghrutadhivas
घृत को संस्कृत में घी भी बोलते है और वेदों में घी को अमृत भी बोला गया है.ध्यान रहे यहाँ घी केवल देशी गाय का घी माना जाता है.इसमें पूरी मूर्ति को घी में नहलाते है.इससे मूर्ति का और भी शुद्धिकरण होता है.
5.Snapan
स्नपन पांचवी प्रक्रिया है और इसको हम अभिषेकम भी बोलते है.आपने वीडियो भी देखा होगा विष्णु भगवान की बड़ी सी मूर्ति है और उसको दूध से नहलाया जा रहा है.तो अभिषेकम का मतलब मूर्ति का अनुष्ठान करना इसको कच्चे दूध से या फिर शुद्ध पानी से किया जाता है.इसमें पंचामृत का भी इस्तेमाल होता है और 108 तरीके से अभिषेक होता है.आपने जरुर से सुना होगा राम मंदिर में कुछ पानी अफ़ग़ानिस्तान से आया है कुछ पानी नेपाल से आया है.इसी तरह से 108 तरीकों से अभिषेक किया जाता है.
6.Netra-Anavaran
कर्मा कुटीर में घी और शहद का लेप लगा के मूर्ति की आंख बंद कर दी जाती है अब आया है उसको खोलने का समय.जिस भी शिल्पीकार ने मूर्ति ने बनाया होता है वो सीशा ले के मूर्ति के सामने खड़ा होता है क्यूंकि सबसे पहले मूर्ति की जब पट्टी खुलती है तो उनकी आँखों में इतनी शक्ति है की वो किसी भी मनुष्य पे सीधे नहीं पड़ सकती.ये शीशा वाली विधि अपने इंटरनेट पे कई बार देखी होगी जहाँ पे वो शीशा टूट जाता है इतनी शक्ति आ जाती है उस मूर्ति के अंदर.
मूर्ति को नेत्र-अनावरण करने से पहले भोजन भी कराया जाता है और नेत्र-अनावरण के बाद मूर्ति को सीधा लिटाया जाता है जो घी लगा होता है मूर्ति के शारीर पे उसको पूछा जाता है और फिर उसको एक रात के लिए विश्राम करने के लिए छोड़ दिया जाता है.रात में जब वो मूर्ति सो रही होती है तो निद्रा देवी का आहवाहन किया जाता है .पुरोहित और पंडितों द्वारा 200 यज्ञ किये जाते है आठों दिशाओं में किये जाते है.और बीच में एक कलश रखा होता है जिसमे जल होता है और एक बूँद उसमे घी की डाल दी जाती है.
सुबह होने में जिस मूर्ति को सुलाया गया था उसी मूर्ति को उस कलश के पानी से छिडक के जगाया जाता है.मूर्ति को जगाने के बाद उसे गर्भ गृह में ले जाते है. गर्भ गृह में जो पिण्डिका होती है जहाँ पे मूर्ति स्थापित होती है वहां पे मूर्ति को रख दिया जाता है.मूर्ति के स्थापित होने के बाद वहां के जो पुजारी होते है.या फिर जो सत्पुरुष होते है वो एक अलग पूजा शुरू करते है जिसको हम PranPratisha कहते है.
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बहुत से लोगों को ये PranPratistha की विधि नहीं मालूम तो उन सभी लोगों के साथ ये जानकारी शेयर करे जिनको नहीं मालूम या फिर आधा अधूरा मालूम है.जिससे की सही जानकारी लोगों तक पहुंचे.
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